नई दिल्ली : लोकसभा में नेता विपक्ष के पद की गूंज अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल से इस बारे में जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि लोकसभा में बिना नेता विपक्ष के लोकपाल के चयन पर सवाल उठ सकता है। लोकतंत्र के लिए नेता विपक्ष का पद काफी अहम होता है। लिहाजा इस बारे में चार सप्ताह में अपना जवाब कोर्ट के सामने पेश किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल चयन के मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि लोकसभा में नेता विपक्ष का पद काफी अहम होता है और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि नेता विपक्ष सदन की आवाज होता है, वह उन प्रतिनिधियों की आवाज होता है, जो सरकार से अलग होते हैं। कोर्ट ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने कभी सोचा नहीं होगा कि ऐसी स्थिति भी आएगी, इसलिए हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि नेता विपक्ष के बिना लोकपाल का चयन करने के लिए बनी समिति प्रभावहीन होगी। मालूम हो कि लोकसभा में नेता विपक्ष को लेकर स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस पार्टी को नेता विपक्ष का पद नहीं दिए जाने के अपने फैसले से अवगत करा दिया है। स्पीकर ने इस बात का हवाला दिया है कि चूंकि सदन में नेता विपक्ष के लिए जरूरी संख्या नहीं होने की वजह से यह फैसला लिया गया है। नेता विपक्ष के लिए कांग्रेस के पास जरूरी 55 सांसद नहीं हैं। नेता विपक्ष के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा कि एलओपी या लीडर ऑफ लार्जेस्ट अपोजिशन पार्टी अलग पद है। ये कोई पहली बार नहीं हुआ है। नेहरू जी के समय से सात बार ऐसे मौके आए हैं जब लोकसभा में नेता विपक्ष का पद नहीं था। ये तो 8वीं बार ऐसा हो रहा है जब सदन में किसी पार्टी के पास नेता विपक्ष का पद हासिल करने के लिए जनादेश नहीं है। ये संसद का मामला है। एक्जीक्युटिव की इसमें कोई भूमिका नहीं है।