श्रीहरिकोटा: इसरो ने श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से देश के अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-III के सफल प्रक्षेपण के साथ अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में सफलता की एक और छलांग लगा दी है। स्पेस सेंटर से सुबह करीब साढ़े नौ बजे लॉन्च किए इस रॉकेट की लंबाई 42.4 मीटर है और इस पर कुल लागत 155 करोड़ की आई है। भारत के सबसे वजनी रॉकेट को गुरुवार सुबह 9.30 बजे छोड़ा गया। 630 टन वजनी इस रॉकेट को तरल एवं ठोस ईंधन से ऊर्जा दी गई। इस तरह से इस प्रक्षेपण से भारत के स्पेस मिशन का रास्ता साफ हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस शानदार कामयाबी के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है। नई पीढ़ी के प्रक्षेपण यान के विकास और अंतरिक्ष से धरती पर लौटने की तकनीक हासिल करने के लिए इसरो ने यह सफल परीक्षण किया है। यान अपने साथ एक मानव रहित क्रू मॉड्यूल भी साथ लेकर गया है। इस परीक्षण में अंतरिक्ष से लौटने की तकनीक का भी परीक्षण किया जा रहा है। 630 टन वजन का यह यान करीब 3.65 टन वजनी क्रू-मॉड्यूल लेकर जा रहा है। यह इसरो का यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना का हिस्सा है। इसरो का ये अत्याधुनिक रॉकेट चार टन या उससे अधिक वजन के सैटेलाइट ले जाने में सक्षम है। इसकी लांचिंग से भारत की अंतरराष्ट्रीय भूमिका को भी बल मिलेगा और इसरो अपनी इस क्षमता से अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के भारी सैटेलाइट लांच कर, इसका व्यावसायिक इस्तेमाल कर सकेगा। इसरो को अंतरिक्ष में अपना मानव मिशन भेजने के लिए अन्य तकनीकें भी उसे विकसित करनी हैं। यदि 1600 डिग्री सेल्सियस तक गरम वायुमंडल से कैप्सूल को सकुशल धरती पर वापस लाया जा सका तो इसका मतलब होगा कि इसरो ऐसा कैप्सूल बनाने में सक्षम है जो इतनी विपरीत परिस्थितियों को भी झेल सकता है। गौर हो कि ऐसे कैप्सूल में ही अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा जाता है। हालांकि इस प्रयोग के सफल रहने के बाद भी इसरो को अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने में लगभग पांच साल लगेंगे।