हरियाणा में भले ही सरकार की तस्वीर साफ हो गई हो, लेकिन महाराष्ट्र में सरकार को लेकर सस्पेंस जारी है। बीजेपी से बातचीत करने के लिए मुंबई से दिल्ली आए शिवसेना के दो नेता अनिल और सुभाष देसाई बीती रात ही मुंबई वापस लौट गए हैं। बीजेपी चाहती है कि नई सरकार को समर्थन के मुद्दे पर शिवसेना अपना रुख जल्द से जल्द साफ करे, ताकि पार्टी उसकी भूमिका तय कर सके। सूत्रों के मुताबिक खबर है कि अनिल और सुभाष देसाई की मुलाकात जेपी नड्ड़ा से हुई है, लेकिन इस पर कोई औपचारिक बयान नहीं आया है। वहीं कयास ये भी हैं कि आज या कल उद्धव ठाकरे भी पीएम से मिलने दिल्ली पहुंच सकते हैं। वहीं मुख्यमंत्री पद के लिए गडकरी का नाम उछलने के बाद मामले और पेंच आ गया है। मंगलवार को नागपुर पहुंचे गडकरी का जबरदस्त स्वागत किया गया और विदर्भ के बीजेपी विधायकों ने नितिन गडकरी को महाराष्ट्र की कमान सौंपने की मांग रखी है। विदर्भ इलाके के 44 में से 35 विधायकों ने नागपुर में गडकरी से मुलाकात कर ये मांग की। हालांकि खुद गडकरी ऐसी किसी संभावना से इनकार कर रहे हैं। महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन पर सस्पेंस और गहरा हो गया है। मंगलवार को मुंबई में बीजेपी विधायक दल की बैठक होनेवाली थी, लेकिन अब इसे दिवाली तक के लिए टाल दिया गया है। विधायक दल के नेता के चुनाव के लिए मंगलवार को दिल्ली से राजनाथ सिंह और जेपी नड्डा सरीखे केंद्रीय नेता मुंबई पहुंचने वाले थे। लेकिन दोनों ने अपना कार्यक्रम फिलहाल रद्द कर दिया है। बताया जा रहा है कि ये फैसला दिवाली के त्योहार को देखते हुए लिया गया है। महाराष्ट्र के रण में बाजी बीजेपी के हाथ लगी, लेकिन बहुमत से थोड़ी दूरी की वजह से सरकार कैसे और कब बनेगी। इस पर फैसला अभी तक नहीं हो सका है। बीजेपी विधायकों की केंद्रीय पर्यवेक्षकों राजनाथ सिंह और जे पी नड्डा की मौजूदगी में होने वाली मीटिंग को आखिरी समय में टाल दिया गया और खबर आई कि महाराष्ट्र में सरकार कब और कैसे बनेगी। इसपर फैसला अब दिवाली के बाद होगा। हालांकि सियासी जानकार इस फैसले को बीजेपी की रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं। सूत्रों की मानें तो एनसीपी के बिन मांगे समर्थन को देखते हुए बीजेपी अब शिवसेना को बारगेनिंग के लिए बैकफुट पर रखना चाहती है। बीजेपी चाहती है कि नई सरकार को समर्थन के मुद्दे पर शिवसेना अपना रुख जल्द से जल्द साफ करे, ताकि पार्टी उसकी भूमिका तय कर सके। उद्धव ठाकरे की मुश्किल ये है कि सीएम की कुर्सी पर दावा छोड़ने के बावजूद वो डिप्टी सीएम का पद पार्टी के नाम करना चाहते हैं, जबकि बीजेपी की कोशिश ज्यादा से ज्यादा अहम पद अपने पास रखने की है। जाहिर है बीजेपी के ताजा फैसले ने गेंद फिर से शिवसेना के पाले में डाल दी है।