नरेंद्र मोदी ने एयरफोर्स के इकलौते मार्शल अर्जन सिंह को श्रद्धांजलि दी। हार्ट अटैक के बाद रविवार को दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में मार्शल का निधन हो गया। वे 98 साल के थे। नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण मार्शल को देखने पहुंचे थे। मोदी ने उन्हें याद करते हुए कहा, ''देश के वीर सैनिक, एक सेनापति और 1965 की जंग के योद्धा नहीं रहे। उनकी रगो में सैनिक अनुशासन कूट-कूट कर भरा था। आखिरी वक्त में उनका शरीर साथ नहीं दे रहा था, लेकिन जज्बा बरकरार था।'' उधर, गृह मंत्रालय ने बताया है कि दिल्ली के बरार चौक पर सोमवार सुबह 10 बजे अर्जन सिंह का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार होगा। इस दौरान सोमवार को उनके सम्मान में राजधानी में राष्ट्रध्वज आधा झुका रहेगा। बता दें कि अर्जन सिंह महज 44 साल की उम्र में एयरफोर्स चीफ बने थे। पाकिस्तान के साथ 1965 की जंग में उतरी एयरफोर्स की कमान उनके ही हाथों में थी। देश की तीनों सेनाओं में अब तक तीन मार्शल हुए हैं। अर्जन सिंह उनमें से एक थे। उन्हें 5 स्टार रैंक हासिल करने का गौरव मिला। अर्जन सिंह अनुशासन की मिसाल थे... - मोदी ने गुजरात की रैली कहा, ''मैं जब दिल्ली से चला तो एक दुखद समाचार मिला। हमारे देश के वीर सैनिक, देश के सेनापति और 1965 की जंग के योद्धा नहीं रहे। मैं कुछ दिन पहले एक प्रोग्राम में उनसे मिला था। उनकी रगो में अनुशासन कूट-कूट कर भरा था। तबीयत खराब होने के बाद भी मुझे देखकर खड़े होने लगे और सैल्यूट करने की कोशिश की। मैंने कहा कि मार्शल आपको खड़े नहीं होना चाहिए।'' - ''कल जब उन्हें हार्ट अटैक आया तो मैं उनसे मिलने आर्मी हॉस्पिटल गया। उनका शरीर साथ नहीं दे रहा था, लेकिन जज्बा देखते ही बनता था। कोई भी प्रोग्राम हो हमेशा पूरी यूनिफार्म में आते थे। मैं वीर योद्धा को श्रद्धांजलि देता हूं और आशा करता हूं कि देश की युवा पीढ़ी मार्शल के जज्बे और अनुशासन से प्रेरणा लेगी।'' - रविवार रात को मोदी ने ट्वीट किया, "इंडियन एयरफोर्स के मार्शल अर्जन सिंह के निधन पर भारत में गहरा दुख है। हम देश के लिए उनके शानदार योगदान को याद रखेंगे। सिंह का फोकस IAF की ताकत को बढ़ाने पर था। उन्होंने देश की रक्षा क्षमता में बहुत इजाफा किया। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और उन लोगों के साथ हैं, जिन्हें दुख पहुंचा है। सिंह एक बेहतरीन एयर वॉरियर और शानदार इंसान थे। देश एयरफोर्स के लिए उनके योगदान को कभी नहीं भूलेगा।" प्रेसिडेंट बोले- वे हीरो थे - प्रेसिडेंट रामनाथ कोविंद ने कहा, "भारतीय वायु सेना के बहादुर वॉरियर के निधन पर मुझे गहरा दुख है। उनके परिवार और IAF कम्युनिटी के साथ मेरी संवेदनाएं हैं। वे वर्ल्ड वार-2 के हीरो थे। उन्होंने 1965 की जंग में अपनी लीडरशिप की बदौलत देश में अपने लिए सम्मान हासिल किया।" उनका जीवन मिसाल था- डिफेंस मिनिस्टर - निर्मला सीतारमण ने कहा, "अर्जन सिंह का जीवन एक मिसाल था। उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ीं। ये भारी क्षति है। उन्होंने जिस तरह का जीवन जिया और आदर्श पेश किए उन्हें पीढ़ियों तक याद किया जाएगा।" ये लोग हॉस्पिटल पहुंचे थे - अर्जन सिंह के मिलिट्री हॉस्पिटल में दाखिल होने के बाद नरेंद्र मोदी, डिफेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण, आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत, एयर चीफ मार्शल बिरेंदर सिंह धनोआ और एडमिरल सुनील लांबा उन्हें देखने पहुंचे थे। मार्शल कभी रिटायर नहीं होते हैं - देश में अब तक एयर मार्शल अर्जन सिंह, फील्ड मार्शल मानिक शॉ और केएम करियप्पा को ही 5 स्टार रैंक मिली है, मार्शल कभी सेना से रिटायर नहीं होते हैं। अर्जन सिंह 2002 में 5 स्टार रैंक के लिए प्रमोट हुए। उन्हें पद्म विभूषण अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। व्हील चेयर पर आए और खड़े होकर कलाम को किया था सैल्यूट - 27 जुलाई, 2015 को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के निधन के बाद उनका पार्थिव शरीर दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर लाया गया। तब कलाम के अंतिम दर्शन के लिए राष्ट्रपति और पीएम समेत कई नेता पहुंचे थे। लेकिन सबकी नजरें कांपते हाथों से सैल्यूट करते योद्धा अर्जन सिंह पर थीं। वे आए तो व्हीलचेयर पर थे, लेकिन कलाम को देखते ही खुद चलकर पास आए और तनकर सलामी भी दी थी। अविभाजित भारत मेें जन्मे अर्जन सिंह - अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1919 को अविभाजित भारत के लायलपुर में हुआ था। ये जगह अब पाकिस्तान के फैसलाबाद में है। 1938 में 19 साल की उम्र में RAF क्रेनवेल में उनका सिलेक्शन एम्पायर पायलट ट्रेनिंग के लिए हुआ। उनकी पहली पोस्टिंग नॉर्थ वेस्टर्न फ्रंटियर प्रॉविंस में वेस्टलैंड वापिटी बाइप्लेंस उड़ाने के लिए हुई। वे IAF की नंबर वन स्क्वॉड्रन के मेंबर थे। उन्हें कुछ वक्त के लिए नंबर 2 स्क्वॉड्रन में भी भेजा गया था। लेकिन, जब नंबर वन स्क्वॉड्रन को हॉकर हरिकेन प्लेन मिले तो सिंह को वापस बुला लिया गया। 1944 में उन्हें स्क्वॉड्रन लीडर बनाया गया और उन्होंने अराकान कैंपेन के दौरान जापानियों के खिलाफ टीम को लीड किया। बर्मा, इम्फाल में सक्सेसफुल कैंपेन लीड करने की वजह से 1944 में सिंह को डिस्टिंगुइश्ड फ्लाइंग क्रॉस (DFC) दिया गया। आजादी के दिन 100 प्लेंस का फ्लाई-पास्ट लीड किया - 15 अगस्त 1947 को सिंह को एक और सम्मान दिया गया। उन्हें दिल्ली के लाल किले के ऊपर से 100 IAF एयरक्राफ्ट्स के फ्लाई-पास्ट को लीड करने का मौका दिया गया। विंग कमांडर प्रमोट होने के बाद सिंह यूके के स्टाफ कॉलेज में भी गए और आजादी के तुरंत बाद उन्हें अंबाला में एयर ऑफिसर कमांडिंग बना दिया गया। 1949 में एयर कोमोडोर प्रमोट किए जाने के बाद सिंह ने एयर ऑफिसर कमांडिंग ऑफ ऑपरेशनल कमांड का जिम्मा संभाला। इसे ही बाद में वेस्टर्न एयर कमांड कहा गया। सिंह लगातार प्रमोट होते रहे और 1962 की जंग खत्म होते-होते उन्हें DCAS बनाया गया और 1963 में वे VCAS बन गए।