मनोहर लाल खट्टर हरियाणा के अगले मुख्यमंत्री होंगे। 40 साल तक संघ के प्रचारक रहे खट्टर पीएम मोदी के भी करीबी रहे हैं। मनोहर लाल खट्टर के अबतक के सियासी सफर पर एक नजर। 60 साल की उम्र में पहली बार विधायक बनने वाले मनोहर लाल खट्टर को प्रशासन का कोई तजुर्बा नहीं रहा है। वो उत्तर हरियाणा के करनाल से चुनकर आए हैं, जहां से इससे पहले कोई विधायक मुख्यमंत्री नहीं बना। वो पंजाबी समुदाय से आते हैं जो 90 में से राज्य की बमुश्किल दो या तीन सीट पर असर रखता है। 1996 में भजनलाल के दूसरे शासनकाल के खत्म होने के बाद किसी गैर जाट को मुख्यमंत्री बनने का मौका 18साल बाद मिला है। हरियाणा में बीजेपी का पहला सीएम बनने वाले खट्टर के मुकाबले में अँबाला कैंट से अनिल विज, नारनौंद से कैप्टन अभिमन्यु, महेंद्रगढ़ के विधायक और राज्य बीजेपी के अध्यक्ष राम विलास शर्मा के अलावा गुड़गांव सांसद राव इंदरजीत सिंह और फरीदाबाद सांसद कृष्णपाल गुर्जर भी थे। लेकिन मुहर खट्टर के नाम पर लगी। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस स्टाइल में विधायक दल की बैठक के पहले ही पार्टी आलाकमान की ओर से सभी दावेदारों को अपनी दावेदारी वापस लेने की ताकीद कर दी गई थी। खट्टर 40 साल से संघ से जुड़े रहे हैं और बीते 20 साल से बीजेपी से, लेकिन उऩके मुख्यमंत्री बनने की सबसे अहम वजह है उनका प्रधानमंत्री का करीबी होना। खट्टर उस वक्त से प्रधानमंत्री मोदी के करीबी रहे हैं जब मोदी मुख्यमंत्री भी नहीं बने थे। जब हिमाचल में नरेंद्र मोदी प्रभारी थे, तब खट्टर सह प्रभारी थे। जब मोदी 1996 में हरियाणा बीजेपी के इंचार्ज थे तब भी खट्टर उनके साथ थे। भुज के भूकंप में सरकारी मशीनरी फेल होने की वजह से जब गुजरात में केशुभाई पटेल की जगह मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया तब कच्छ के चुनाव की देख रेख के लिए मोदी ने खट्टर को ही गुजरात बुलाया था। वाराणसी से जब मोदी चुनाव के लिए खड़े हुए तब खट्टर को 50 वार्ड की जिम्मेदारी दी गई। आम चुनाव के लिए खट्टर को हरियाणा में कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया। खट्टर मोदी के कितने करीबी हैं इसे इस तरह समझिए कि रोहतक के बाशिन्दे खट्टर को करनाल से चुनाव लड़वाने का फैसला मोदी ने ही किया और हरियाणा एसेंबली चुनाव के प्रचार का आगाज भी उन्होंने करनाल से ही किया। खट्टर का मुख्यमंत्री बनना इसलिए भी मुमकिन हुआ, क्योंकि गैर जाट प्रभाव वाले उत्तरी हरियाणा खास तौर पर जीटी रोड इलाके में पार्टी को शानदार जीत मिली, जबकि जाट बहुल 28 में से 22 सीटों पर पार्टी हार गई। लिहाजा विधायक दल की बैठक में प्रेमलता की चौधरी वीरेंद्र को सीएम बनाने की मांग अनसुनी रह गई, रामविलास समर्थकों के नारे से भी पार्टी नेतृत्व नहीं पसीजा और खट्टर विधायक दल के नेता चुन लिए गए।