आर्मी ने रविवार को 15 हजार करोड़ के हथियारों की निर्माण परियोजना को मंजूरी दे दी। इस परियोजना में देश में ही पेचीदा तकनीक वाले हथियार और टैंक बनाए जाएंगे। सरकार का मकसद हथियारों के आयात में होने वाली देरी को रोकना है। इस प्रोजेक्ट से 30 दिन लगातार चलने वाली जंग में भी हथियारों का जखीरा कम नहीं पड़ेगा। 11 प्राइवेट फर्म्स को भी शामिल किया जाएगा - आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, आर्मी के इस प्रोजेक्ट में 11 निजी फर्मों को भी शामिल किया जाएगा। परियोजना की निगरानी रक्षा मंत्रालय और आर्मी के टॉप अफसर करेंगे। - प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा मकसद यही है कि हथियारों के आयात या विदेशों पर निर्भरता को खत्म किया जा सके। - सरकार के वरिष्ठ अफसर ने बताया, "परियोजना में 15 हजार करोड़ के हथियार बनाए जाने हैं। इसे 10 साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।" - सूत्रों की मानें तो इस परियोजना में रॉकेट्स और लॉन्चर, एयर डिफेंस सिस्टम, आर्टिलरी बंदूकें और लड़ाई के लिए जरूरी गाड़ियां बनाई जानी हैं। - परियोजना के पहले चरण के बाद प्रोडक्शन टारगेट का रिव्यू किया जाएगा। हथियार निर्माण का अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट - बीते कई सालों में इसे देश में हथियारों के निर्माण का अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट करार दिया जा रहा है। - चीन द्वारा अपने मिलिट्री खर्चों में बढ़ोतरी करने के बाद भारत की तरफ से भी इसकी जरूरत महसूस की जा रही थी - आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत भी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी यानी भारत की आर्मी में हथियारों और गोलाबारूद की जरूरत की बात कह चुके हैं। वो क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर खतरा भी बता चुके हैं। कैग ने रिपोर्ट में बताई थी देश में हथियार-रसद की कमी - जुलाई 2017 में कैग (कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) ने सरकार को चेताया था कि फौज के पास बेहद कम गोला-बारूद बचा है। आज अगर आर्मी को जंग करनी पड़ जाए तो इस्तेमाल किए जाने वाले असलहों (हथियार और दूसरे सामान) में से 40% तो 10 दिन भी नहीं चल पाएंगे। 70% टैंक और तोपों के 44% गोलों का भंडार भी 10 दिन ही चल पाएगा। - नियमानुसार कभी भी जंग के लिए तैयार रहने की खातिर आर्मी के पास 40 दिन लायक गोला-बारूद का भंडार होना चाहिए। - कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि तीन साल बाद भी जंग के लिए जरूरी भंडार रखने के लिहाज से कोई खास सुधार नहीं आया। रिपोर्ट में कहा गया, "मार्च 2013 के बाद भी सेना के गोला-बारूद भंडार में गंभीर कमी और ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड की तरफ से सप्लाई किए गए गोला-बारूद की क्वालिटी में कोई खास सुधार नहीं आया। देश में 152 तरह के अस्लहे में केवल 61 प्रकार के ही मौजूद हैं।" - मई 2015 में भी कैग ने आर्मी के कम होते गोला-बारूद के भंडार पर विस्तृत रिपोर्ट संसद में रखी थी।