मथुरा। मथुरा सोलह कलावतारी कान्हा की जन्मभूमि संग क्रीड़ा भूमि है। बदलेव ब्रज के राजा हैं। उन दोनों भाइयों ने देवताओं के राजा इंद्र का मानमर्दन और राजा कंस का संहार किया। वह कलियुग में भी ऐसे चमत्कार करते रहते हैं। अहंकार का विनाश करने में वह प्रभु अपने गोप-ग्वाल, गोपियों के द्वारा रोमांचक लीला चुनाव में भी कराने में नहीं चूकते। शायद यही कारण है कि मथुरा लोकसभा क्षेत्र में प्रसिद्ध राजा महाराजाओं के साथ स्थापित राजनीतिज्ञ भी जमानत जब्त करा चुके हैं। इनमें क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप, अटल बिहारी बाजपेयी, राजा मानसिंह और राजा मानवेंद्र सिंह भी शामिल हैं। दिग्गजों की हार का सिलसिला पहले आम चुनाव से ही चल निकला और उसमें विश्वविख्यात क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप को हार का सामना करना पड़ा, हालांकि दूसरे चुनाव में वह मथुरा के सांसद बने। इसी चुनाव में भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष रहे अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त हुई। जिन राजा मान सिंह की मृत्यु पर मथुरा-आगरा, राजस्थान में कांग्रेस के समीकरण ध्वस्त हो गये, वह डीग के महाराजा मथुरा में आये तो हार गये। जिन पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरन सिंह का 1969 से मथुरा में जबरदस्त दबदबा रहा है, उनकी पत्नी गायत्री देवी और उन्हीं की पुत्री ज्ञानवती को भी यहां से हार का स्वाद चखना पड़ा। गांधी परिवार के निकटस्थ एवं विदेश मंत्री कुं. नटवर सिंह भी यहां कामयाब नहीं हो सके। कुं. नटवर सिंह की हार में यह बात जुड़ी है कि तब उनकी पत्नी महाराजा पटियाला की बेटी ने भी चुनाव प्रचार किया था। अबागढ़ के महाराजा कुं. मानवेंद्र सिंह इस सीट से तीन बार सांसद बने, लेकिन उन्हें भी यहां एक बार हारना पड़ा। -राजाओं की हुई जमानत जब्त- रोचक बात यह कि भरतपुर के राजा बच्चू सिंह ने 1967 में निर्दलीय के रूप में लड़कर मथुरा से जीत का कीर्तिमान बनाया। उनकी मौत 1968 में हो गई। इसके बाद 1969 में उपचुनाव हुआ। भरतपुर राजपरिवार ने राजा बच्चूसिंह की लोकप्रियता को भुनाना चाहा। डीग के राजा मान सिंह मथुरा आकर चुनावी अखाड़े में कूदे, लेकिन उन्हें जनता ने पराजित कर दिया और पूर्व सांसद दिगंबर सिंह को एक बार फिर संसद पहुंचा दिया। राजा मान सिंह को दूसरा स्थान भी नहीं मिल पाया। इस उपचुनावें दूसरा नंबर मिला हरियाणा के मनीराम बागड़ी को। राजाओं को पराजित करने की इस कड़ी में बाद में राजा मानवेंद्र सिंह शामिल हुये और ब्रजवासियोें ने उन्हें पराजित कर दिया। मालूम हो मानवेंद्र सिंह सपा की साइकिल पर सवार हुये थे और पूरन प्रकाश बसवा के हाथी पर। इसमें भी पूरन प्रकाश जमानत बचाने में कामयाब हुये, जबकि मानवेद्र सिंह चंद वोटों के अंतर से जमानत गवां बैठे। इस क्षेत्र से हारने वाले राजा महेंद्र प्रताप भी महाराजा थे, जिन्हें दिगंबर सिंह से हारना पड़ा था। -चाणक्य भी न जीते- मथुरा जनपद की राजनीति का चाणक्य जिस नेता को कहा जाता है वह पूर्व मंत्री श्याम सुंदर शर्मा बसपा जैसी दमदार पार्टी के हाथी पर विजय ध्वज नहीं फहरा सके। पूर्व मंत्री चौ. लक्ष्मीनारायण एवं दिग्गज राजनेता के पुत्र खुद विधायक रहे पूरन प्रकाश भी सांसद न बन पाए। प्रदेश की राजनीति के साथ इंदिरा गांधी से सीधे संबंध रखने वाले तथा मुख्यमंत्री की दौड़ के दाबेदार पूर्व वित्त मंत्री लक्ष्मीरमण आचार्य भी दो बार हारे। -ग्लैमर का तड़का भी धड़ाम- गांधी परिवार से निकट संबंध के लिये प्रसिद्ध एवं बड़े उद्योगपति महेश पाठक ने इस सीट से दमदारी से चुनाव लड़ा। उन्होंने मुम्बइया फिल्मी तड़का जमकर लगाया। शहर-गांव मानो ग्लैमर में डुबकी लगाते नजर आये। मथुरा में सभा हुई तो आंकलन किया गया कि उसमें एक लाख की भीड़ जुटी। जब परिणाम आया तो महेश पाठक के खाते में करीब 65 हजार मत पाये गये। -फिर गेंद ब्रजवासियों के पाले में- कान्हा के आंगन में एक बार फिर चुनाव हो रहा है। राजनीतिक दिग्गज मैदान में हैं तो ग्लैमर का शिखर भी। चौधरी चरण सिंह निकटस्थ रहे चंदन सिंह है तो उनके पौत्र एवं सांसद जयंत चौधरी, ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी, हाथी पर सवार हैं योगेश द्विवेदी के अलावा आंधी की तरह राजनीतिक क्षितिज पर छा गई आम आदमी पार्टी के अनुज गर्ग मैदान में दमखम दिखा रहे हैं। हेमा मालिनी का ग्लैमर अभी सिर चढ़कर बोल रहा है और भारी भीड़ उन्हें देखने को उमड़ रही है। इसके विपरीत राजनीति यह भी कि आने वाले दिनों में ग्लैमर को तड़का दूसरे दल भी जबरदस्त लगाएंगे। राजनीतिक तुरूप के पत्ते के रूप में एक ब्रजवासिन हेमा मालिनी को नामांकन हुआ है। फिलहाल तस्वीर की रोशनी ये कि गेंद एक बार फिर ब्रजवासियों के पाले में आ गई है।