बिहार में बुधवार शाम जिस तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदलता रहा, बीजेपी के स्ट्रैटेजिक फैसले उससे भी दोगुनी तेजी से सामने आते रहे। दो घंटे के अंदर विधायकों और विधान परिषद सदस्यों की बैठक निपटाकर पार्टी ने नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया। नीतीश के एक्शन और बीजेपी के रिएक्शन की तेजी ने एक बात तो साफ कर दी कि दोनों के बीच पर्दे के पीछे सारी स्ट्रैटजी पहले तय हो चुकी थी। ऐसा कहा जा रहा है कि बीजेपी और जेडीयू के साथ आने का फैसला नीतीश के इस्तीफे के तीन दिन पहले ही ले लिया गया था। दरअसल, गुरु गोविंद सिंह की 350 वीं वर्षगांठ पर 5 जनवरी को पीएम मोदी और 10 जनवरी को बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह पटना गए थे। यहां से शुरुआत हुई और फिर पटना से लेकर दिल्ली तक नीतीश का बीजेपी के नेताओं के साथ साथ संपर्क शुरू हो गया। - इस साल 10 फरवरी को नीतीश सोची-समझी रणनीति के तहत पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम की किताब के विमोचन समारोह में दिल्ली पहुंचे। संदेश गया कि वह मोदी के खिलाफ विपक्ष की नई जुगलबंदी के सूत्रधार बन रहे हैं, लेकिन जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो नीतीश ने उसी दिन बीजेपी की लीडरशिप में शामिल एक नेता के साथ लंबी मुलाकात की थी। - इसके बाद जेडीयू महासचिव केसी त्यागी कई मीटिंग्स में संघ से जुड़े कई नेताओं के साथ दिखे। एसपी-डीएम की पोस्टिंग में RDJ की दखल - रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलाने में अरुण जेटली की अहम भूमिका रही। जेटली के साथ नीतीश की चर्चा होती रही। जेटली मोदी और शाह को रिपोर्ट देते थे। - सूत्रों के मुताबिक महागठबंधन सरकार में लालू की दखलंदाजी से नीतीश परेशान थे। आरजेदी डीएम-एसपी की नियुक्ति में नीतीश की दखल नहीं चाहता था। यहां से हुई दरार की शुरुआत - महागठबंधन में दरार की औपचारिक शुरुआत रक्सौल में पानी के एक प्रोजेक्ट से शुरू हुई। इसमें तेजस्वी बेहद दिलचस्पी ले रहे थे, लेकिन नीतीश के करीबी मंत्री राजीव रंजन सिंह लल्लन ने इसमें अलग भूमिका ले ली। - इस तकरार के बाद ही लालू परिवार के बेनामी संपत्ति के दस्तावेज खंगाले जाने लगे। बेनामी संपत्ति के मामले में पहले पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने की रणनीति बनी थी, लेकिन इनमें से कई दस्तावेज सुशील मोदी को मिल गए। इस्तीफे से 3 दिन पहले हो गया था सरकार में शामिल होने का फैसला - उन्होंने मीडिया के जरिये लालू परिवार को घेरना शुरू कर दिया। नीतीश के इस्तीफे से तीन दिन पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने रणनीतिकारों के साथ चर्चा की थी। इसमें बाहर से समर्थन देने, सरकार में शामिल होने या चुनाव में जाने के विकल्पों पर चर्चा हुई। - नफा-नुकसान खंगालने के बाद सरकार में शामिल होने का विकल्प ही पसंद आया। इसलिए भाजपा ने रात में ही सरकार में शामिल होने का एलान कर दिया। चार कारण: जिसकीवजह से खराब हो रही थी नीतीश की छवि, बदलना पड़ा सहयोगी 1) पेट्रोल पंप घोटाला:लालू यादव के बेटे तेज प्रताप पर धोखाधड़ी के जरिये पटना के नजदीक बेऊर पेट्रोल पंप हासिल करने का आरोप लगा। जब तेज प्रताप पेट्रोल पंप के लिए इंटरव्यू में बैठे, तब वे बेऊर की उस 43 डिसमिल जमीन के मालिक नहीं थे जिसका दावा किया था। 2) बेटियों के नाम शेल कंपनियां: तेजस्वी के खिलाफ बिहार के सबसे बड़े मॉल का प्रमोशन कर रही कंपनी में भारी शेयर रखने का आरोप है। लालू की तीन बेटियों के खिलाफ भी शेल कंपनियों में डायरेक्टर होने का आरोप हैं। लालू परिवार पर करोड़ों रुपए के भारी-भरकम फ्री गिफ्ट भी जांच के दायरे में है। 3) मनी लॉड्रिंग केस: ईडी ने लालू की बेटी मीसा भारती की कंपनी से जुड़े एक चार्टर्ड एकाउंटेंट को गिरफ्तार किया। उस पर आठ हजार करोड़ रुपए की मनी लॉड्रिंग का आरोप। मीसा और उनके पति से लगातार पूछताछ की प्रक्रिया जारी है। 4) बेनामी संपत्ति जब्ती:20जून को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने लालू यादव के रिश्तेदारों की 12 संपत्तियां जब्त कीं। ये संपत्ति लालू की बेटी मीसा और उनके पति शैलेश कुमार की है। तेजस्वी और राबड़ी देवी, रागिनी और चंदना यादव की हैं। इन संपत्तियों का मार्केट वैल्यू 175 करोड़ से ज्यादा है।