परिवार में कलह से परेशान मुलायम सिंह यादव अब अपनी विरासत की वसीयत लिखेंगे। मुलायम ने अपने खास लोगों से वसीयत लिखने की चर्चा की है। वसीयत में अखिलेश यादव व अपने दूसरे बेटे प्रतीक यादव की भूमिका तय करेंगे। अखिलेश, मुलायम सिंह की पहली पत्नी मालती और प्रतीक दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे हैं। प्रतीक राजनीति से दूर हैं जबकि उनकी पत्नी अपर्ण सिंह यादव को लखनऊ की कैंट सीट से कैंडिडेट बनाया गया है। सूत्रों का कहना है कि कलह को देख कर नेताजी को वसीयत लिखने की जरूरत महसूस हुई है। मुलायम असहज महसूस कर रहे हैं... - राज्य की राजनीति में 25 साल से ज्यादा वक्त तक पार्टी के साथ दबदबा कायम करने वाले मुलायम खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। - सुलह-समझौते की तमाम कोशिशें नाकाम रही हैं। वे पार्टी और चुनाव चिन्ह का विवाद चुनाव आयोग में पहुंचने से भी आहत हैं। - 2012 में वरिष्ठ नेताओं के विरोध के बावजूद उन्होंने अखिलेश को सीएम बनाया था। सरकार चलाने में मदद भी करते रहे। - अब सपा का टूटना लगभग तय है। संभावना है कि चुनाव आयोग मुलायम का पक्ष सुनने के बाद फैसला सुना देगा। - मुलायम सिंह, बेटे से ज्यादा भाई प्रो. रामगोपाल से नाराज हैं। उनका कहना है कि रामगोपाल अखिलेश का करियर बर्बाद कर रहे हैं। रामगोपाल ने चुनाव आयोग को डॉक्यूमेंट्स सौंपे - प्रो. राम गोपाल यादव ने शनिवार शाम को चुनाव आयोग को डेढ़ लाख पन्नों का दस्तावेज सौंपा। - इन्हें 7 बड़े-बड़े डिब्बों में बंद कर ले जाया गया है। - जिला संगठनों के साथ प्रदेश संगठन और राष्ट्रीय संगठन के पार्टी प्रतिनिधियों के हलफनामे की सात-सात प्रतियों में जमा कराया गया। अखिलेश की शर्तें - राष्ट्रीय अध्यक्ष पद चाहिए। - अमर सिंह को पार्टी से बाहर करो। - शिवपाल यादव प्रदेशाध्यक्ष पद छोड़ें। यूपी के चुनाव में भी बिल्कुल दखल न दें। - टिकट बांटने में पूरी आजादी मिले। मुलायम सिंह की शर्तें - अध्यक्ष पद छोड़ने का सवाल ही नहीं। - रामगोपाल को पार्टी से बाहर रखा जाए। - शिवपाल को पार्टी महासचिव बनाया जाए और उनके बेटे को टिकट दिया जाए। - टिकट बांटने में शिवपाल और मुलायम समर्थकों को तवज्जो दी जाए। यूपी के सबसे बड़े सियासी परिवार में जारी है सियासत की लड़ाई - चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। पर उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सियासी परिवार में वर्चस्व की लड़ाई जारी है। - चर्चा है कि सुलह के लिए शनिवार को कई राउंड हुई सारी बैठकें नाकाम रही। - हालांकि आजम खान के हस्तक्षेप के बाद मुलायम ने पार्टी टूटने का ऐलान नहीं किया। साथ ही नए उम्मीदवारों की लिस्ट भी नहीं जारी की। - मुलायम और अखिलेश दोनों ही पार्टी के अध्यक्ष पद पर अड़े रहे। - इस बीच रामगोपाल यादव ने पार्टी विधायकों, संसदीय दल के नेताओं के हलफनामे चुनाव आयोग को सौंप दिए। इन नेताओं ने अखिलेश को पार्टी अध्यक्ष माना है।